” मक्का और मदीना ,काबा के बारे में कुछ
तथ्य,की ये हिन्दू शिव मंदिर है ?”•
राजा विक्रमादित्य ने अस्वा मेघ यज्ञ
करयाऍ! तब “अरब देश का नाम ” ‘अर्व’ था !
और सफ़ेद घोड़ो के लिए प्रसिद्ध था ! अब
वहा इस्लाम के आने के साथ साथ रेगिस्तान में
बदल गया !
• एक स्वर्ण डिश पर राजा विक्रमादित्य
शिलालेख काबा के अंदर स्थित है ! •
• कुछ मह्तयपूण बाते :
• (१) ये सिद्ध हो चूका है !की मोहम्मद साहब
का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआथा ! पैगम्बर
बन्ने के लिए उन्हों ने हिन्दू परिवार से नाता तोड़
दिया !
• (२) मोहम्मद साहब के चाचा ‘उमर-बिन -ऐ –
हशशाम’ जो भगवान शिव के कट्टर भक्त थे !
धर्म की रक्षा के लिए खुद को समाप्त केर
लिया !इसका साच्या प्रशीध्य ‘अरबीकाव्य
साहित्य- सेअरूल ओकुल’ के २३५ वे पेज पर
अंकित है!
(३) उस प्रष्ट का सार नयी दिल्ली के रीडिंग
रोड पर बने ,लक्ष्मी नारायण मंदिर
की वाटिका में यज्ञशाला के लाल पत्थर के
खम्बे पर काली शय्ही से लिखा है!(कोई
बी जा केर देख सकता है!)
(४) प्राचीन अरबिया में हिन्दू
पूजा की विध्मता “मख-मेदनी ” संशकृत नाम
की पुष्टि होती है !”मख का अर्थ ‘अग्नि है.! और
मेदनी का नाम ‘भूमि’ है !जो की वार्षिक
यज्ञाग्नि का केंद्र हुआ केर ता था ! (५) ‘हज ‘
सब्द तीर्थ यात्रा के घोतक ‘वज्र ‘
का वयुत्पन्ना है !
(६) ‘काबा’ में ‘भगवान शिव के अलावा ३६०
हिन्दू देवी देवताओ का स्थल था!जो हमेशा वेड
मंत्रो से गूजता रहता था !
(७) इसका साच्या प्रशीध्य ‘अरबी काव्य
साहित्य- सेअरूल ओकुल’ के २५७ वे पेज पर
अंकित कविता है! इसका रचयिता लबी बिन -ए-
अक्तव,बिन -ए-तुरफा है! वो मोहम्मदसे २३००
इसा पूर्व हुआ था ! उसने १८०० इसा पूर्व
लगभग लबी ने वेदों की प्रशंसा और अलग अलग
नामोउचचारण किया है !
(८) क्यूंकि पूरे अरब में सिर्फ हिंदु संस्कृति ही थी इसलिए पूरा
अरब मंदिरों से भरा पड़ा था जिसे बाद में लूट-लूट कर
मस्जिद बना लिया गया जिसमें मुख्य मंदिर काबा है.इस
बात का ये एक प्रमाण है कि दुनिया में जितने भी मस्जिद
हैं उन सबका द्वार काबा की तरफ खुलना चाहिए पर
ऐसा नहीं है.
(९) .ये वही जगह है जहाँ भगवान विष्णु
का एक पग पड़ा था तीन पग जमीन नापते समय..चूँकि ये
मंदिर बहुत बड़ा आस्था का केंद्र था जहाँ भारत से भी
काफी मात्रा में लोग जाया करते थे..इसलिए इसमें
मुहम्मद जी का धनार्जन का स्वार्थ था या भगवान
शिव का प्रभाव कि अभी भी उस मंदिर में सारे हिंदु-रीति
रिवाजों का पालन होता है तथा शिवलिंग अभी तक
विराजमान है वहाँ..यहाँ आने वाले मुसलमान हिंदु
ब्राह्मण की तरह सिर के बाल मुड़वाकर बिना सिलाई
किया हुआ एक कपड़ा को शरीर पर लपेट कर काबा के
प्रांगण में प्रवेश करते हैं और इसकी सात परिक्रमा करते
हैं.यहाँ थोड़ा सा भिन्नता दिखाने के लिए ये लोग वैदिक
संस्कृति के विपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं अर्थात हिंदु
अगर घड़ी की दिशा में करते हैं तो ये उसके उल्टी दिशा
में..पर वैदिक संस्कृति के अनुसार सात ही क्यों.? और ये
सब नियम-कानून सिर्फ इसी मस्जिद में क्यों?ना तो सर
का मुण्डन करवाना इनके संस्कार में है और ना ही बिना
सिलाई के कपड़े पहनना पर ये दोनो नियम हिंदु के
अनिवार्य नियम जरुर हैं.
(१०) चलिए अब शब्दों को छोड़कर इनके कुछ रीति-रिवाजों पर
ध्यान देते हैं जो वैदिक संस्कृति के हैं–
ये बकरीद(बकर+ईद) मनाते हैं..बकर को अरबी में गाय
कहते हैं यनि बकरीद गाय-पूजा का दिन है.भले ही
मुसलमान इसे गाय को काटकर और खाकर मनाने लगे..
जिस तरह हिंदु अपने पितरों को श्रद्धा-पूर्वक उन्हें अन्न-
जल चढ़ाते हैं वो परम्परा अब तक मुसलमानों में है जिसे
वो ईद-उल-फितर कहते हैं..फितर शब्द पितर से बना
है.वैदिक समाज एकादशी को शुभ दिन मानते हैं तथा बहुत
से लोग उस दिन उपवास भी रखते हैं,ये प्रथा अब भी है
इनलोगों में.ये इस दिन को ग्यारहवीं शरीफ(पवित्र
ग्यारहवाँ दिन) कहते हैं,शिव-व्रत जो आगे चलकर शेबे-
बरात बन गया,रामध्यान जो रमझान बन गया…इस तरह
से अनेक प्रमाण मिल जाएँगे.
(११) काबा के ३५ मील के घेरे में गैर-मुसलमान
को प्रवेश नहीं करने दिया जाता है,हरेक हज यात्री को
ये सौगन्ध दिलवाई जाती है कि वो हज यात्रा में देखी
गई बातों का किसी से उल्लेख नहीं करेगा.वैसे तो सारे
यात्रियों को चारदीवारी के बाहर से ही शिवलिंग को
छूना तथा चूमना पड़ता है पर अगर किसी कारणवश कुछ
गिने-चुने मुसलमानों को अंदर जाने की अनुमति मिल भी
जाती है तो उसे सौगन्ध दिलवाई जाती है कि अंदर वो
जो कुछ भी देखेंगे उसकी जानकारी अन्य को नहीं देंगे..
कुछ लोग जो जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी
प्रकार अंदर चले गए हैं,उनके अनुसार काबा के प्रवेश-
द्वार पर काँच का एक भव्य द्वीपसमूह लगा है जिसके
उपर भगवत गीता के श्लोक अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक
बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्र बना हुआ है
जिसे वे ईसा और उसकी माता समझते हैं.अंदर गाय के घी
का एक पवित्र दीप सदा जलता रहता है.ये दोनों
मुसलमान धर्म के विपरीत कार्य(चित्र और गाय के घी
का दिया) यहाँ होते हैं.
(१२) अगर अल्लाह को मानव के हित के लिए कोई पैगाम देना
ही था तो सीधे एक ग्रंथ ही भिजवा देते जिब्राइल के
हाथों जैसे हमें हमारे वेद प्राप्त हुए थे..!ये रुक-रुक कर
सोच-सोच कर एक-एक आयत भेजने का क्या अर्थ
है..!.?
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार
में हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार
की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर
घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-
भिन्न हो गया और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगे
अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के
चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े।
उमर-बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में
इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज,
जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक
तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल
हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। बाद में मोहम्मद के
नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईष्यावश अबुल जिहाल ‘अज्ञान
का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय
वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार, गरूड़, नृसिंह
की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक
मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और
दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने का बना था।
‘Holul’ के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहाँ इब्राहम और
इस्माइल की मूर्त्तियो के बराबर रखी थी। मोहम्मद ने उन सब
मूर्त्तियों को तोड़कर वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े
गये शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न
केवल प्रतिष्ठित है, वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस
काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’ को आदर
मान देते हुए चूमते है।
ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द का व्यवहार
ज्यों का त्यों आज ही के अर्थ में प्रयुक्त होता था।
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक थी तथा उस समय
ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में भारत
(हिंद) के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे। हिंद नाम
अरबों को इतना प्यारा लगा कि उन्होंने उस देश के नाम पर
अपनी स्त्रियों एवं बच्चों के नाम भी हिंद पर रखे।
अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ सेअरूल-ओकुल’ के 253वें पृष्ठ पर
हजरत मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है
जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल हिन्दू का प्रयोग बड़े
आदर से किया ह
Source:मुहम्मद पैगम्बर खुद जन्मजात हिंदु थे
और काबा हिंदु मंदिर
http://bharathindu.blogspot.com/2012/03/blog-post_14.html?m=1