सारे जीवन पर्यन्त हम शिष्य भी बने रहते है और गुरु भी।जिससे भी हमें कुछ भी सीखने को मिले उसे गुरु मान कर सम्मान दे ; यही हमें दत्त गुरु ने सिखाया . उनके २४ गुरु थे __
१. पृथ्वी – धैर्य और क्षमा की शिक्षा ली. पृथ्वी पर जीव जंतु मल मुत्र त्यागते है, मनुष्य आग लगाते है, जमीन खोदते है पर पृथ्वी सभी को क्षमा कर देती है.
२. हवा -यह हर जगह बहती है पर किसी के गुण अवगुण नहीं लेती , निरासक्त रहती है . प्राणवायु मात्र भोजन की कामना करती है और प्राण बचाने के लिए मात्र भोजन की अपेक्षा करती है और संतुष्ट रहती है .
३.आकाश – जिस प्रकार आकाश में सब कुछ है उसी तरह हर आत्मा में एकता को देखना चाहिए
४.जल – जिस तरह गंगाजल दर्शन , नामोछारण और स्पर्श से ही पवित्र कर देता है , हमें भी वैसा ही बनाने का प्रयत्न करना चाहिए .
५. अग्नि – की तरह तेजमय रहे और किसी के तेज से दबे नहीं . अग्नि की तरह सब का भोग करते हुए भी सब कुछ हजम कर जाए उसमे लिप्त ना हो जाए.
६. चन्द्र – जिस प्रकार चन्द्र कला घटती बढती है पर मूल चन्द्रमा तो वही रहता है ; वैसे ही शरीर की कोई भी अवस्था हो आत्मा पर उसका कोई असर ना हो .
७. सूर्य – जिस प्रकार सूर्य अपने तेज से पानी खिंच लेता है और समय पर उसे बरसा भी देता है वैसे ही हमें इन्द्रियों से विषय भोग कर समय आने पर उसका त्याग भी कर देना चाहिए .
८. कबूतर – जिस तरह कबूतर अपने साथी , अपने बच्चों में रमे रहकर सुख मानता है और असली सुख परमात्मा के बारे में कुछ नहीं जानता , मूर्ख इंसान भी ऐसे ही अपनों के मोह में उनके संग को ही सुख मानता है
९. अजगर – जिस प्रकार अजगर को पड़े पड़े जो शिकार मिल गया उसे खाकर ही संतुष्ट रहता है अन्यथा कई दिनों तक भूखा भी रह लेता है , हमें भी जो प्रारब्ध से मिल जाए उसमे सुखी रहना चाहिए .
१० .समुद्र – की तरह सदा प्रसन्न और गंभीर , अथाह , अपार और असीम रहना चाहिए .
११. पतंगा – जिस प्रकार अग्नि से मोहित हो कर उसमे जल मरता है , वैसे ही इन्द्रिय सुख से मोहित प्राणी विषय सुख में ही जल मरते है .
१२. भौरा – जिस प्रकार हर फुल का रस लेता है उसी प्रकार हमें भी जीवन में हर घर से कुछ उपयोगी मांग लेना चाहिए .अनावश्यक संग्रह नहीं करना चाहिए .
१३.मधुमक्खी – जिस प्रकार संग्रह कर के रखती है और अंत में उसी के कारण मुसीबत में पद जाती है , हमें भी अनावश्यक संग्रह से बचना चाहिए .
१४. हाथी – जिस प्रकार काठ की स्त्री का स्पर्श कर उसी से बांध जाता है कभी स्त्री को भोग्या ना माने .
१५. मधु निकाल ने वाले से – जैसे मधुमक्खी का संचित मधु कोई और ही भोगता है ; वैसे ही हमारा अनावश्यक संचित धन कोई और ही भोगता है .
१६. हिरन – जिस प्रकार गीत सुन कर मोहित हो जाल में फंस जाते है वैसे ही सन्यासियों को विषय भोग वाले गीत नहीं सुनाने चाहिए .
१७. मछली – जिस प्रकार कांटे में लगे भोजन के चक्कर में प्राण गंवाती है ; मनुष्य भी जिव्हा के स्वाद के लालच में अपने प्राण गंवाता है .
१८. पिंगला वेश्या -के मन में जब वैराग्य जागा तभी वो आशा का त्याग कर चैन की नींद सो सकी .आशा ही सबसे बड़ा दुःख है और निराशा सबसे बड़ा सुख .
१९. शिकारी पक्षी -जब अपनी चोंच में मांस का टुकडा ले कर जा रहा था तो दुसरे पक्षी उसे चोंच मारने लगे . जब उसने उस टुकड़े को छोड़ दिया तभी सुख मिला . वैसे ही प्रिय वस्तु को इकट्ठा करना ही दुःख का कारण है .
२०. युवती – धान कुटती हुई युवती के हाथ की चूड़ियाँ जब शोर कर रही थी तो उसने परेशान हो कर सब निकाल दी सिर्फ १-१ हाथ में रहने दी .जब कई लोग साथ में रहते है तो कल अवश्यम्भावी है .
२१. बाण बनाने वाला -आसन और श्वास जीत कर वैराग्य और अभ्यास द्वारा मन को वश कर लक्ष्य में लगाना .
२२ .सर्प – की तरह अकेले विचरण करना . मठ – मंडली से दूर रहना.
२३. मकड़ी – जैसे अपने मुंह से जाल फैलाती है , उसी में विहार करती है और फिर उसे निगल लेती है इश्वर बी जग को बना कर, उसमे रह कर , फिर अपने में लीन कर लेते है .
२४. इल्ली -इल्ली जिस प्रकार ककून में बंद हो कर दुसरे रूप का चिंतन कर वह रूप पा लेती है , हम भी अपना मन किसी अन्य रूप से एकाग्र कर वह स्वरूप पा सकते है .