एक दिन एक व्यक्ति ने श्री रामदास स्वामी से पूछा,’महात्मन क्या आपके मन में कभी कोई विकार नहीं आता?’
श्री रामदास ने कहा, ‘तुम्हारे प्रश्न का उत्तर तो मैं बादमें दूंगा। परंतु आज से ठीक एक महीने बाद तुम्हारी मृत्यु होने वाली है।
उसे मृत्यु का डर सताने लगा,अब तो उस व्यक्ति की दिनचर्या ही बदल गई। अब तक किए हुए सभी पाप-कर्म याद आने लगे। रात-दिन प्रभु
का सुमिरन करने लगा। उसका मन देहसुख और धन-संपत्ति से दूर हो गया।
आखिर वहं मृत्यु का दिन आ ही गया। वह खुद
ही अपनी मृत्यु शैया तैयार करके उस पर लेट गया।
जैसे ही आंखें मूंदीं, तो देखता है कि श्री रामदास
जी का हाथ उसके सिर पर था और वे कह रहे थे- ‘वत्स! मैं तुमसे एक सवाल पूछने आया हूं? बताओ कि इन दिनों में क्या तुमसे कोई बुरा कार्य हुआ?’ वह व्यक्ति झट से बोला- ‘महाराज, आप पाप कर्म की बात करते हैं? मेरे मन में तो कोई बुरा विचार तक भी नहीं आया। बल्कि मैंने अब तक जितने भी गलत काम किए थे, उनका प्रायश्चित भी कर चुका हूं।’
इस पर श्री रामदास ने कहा कि मैं स्वयं अपनी मृत्यु को सदा याद रखता हूं। इसीलिए कभी भी मेरे मन में कोई विकार नहीं आता।
श्री राम