जब भगवान राम अपनी लीलाएं समाप्त करके सरयू नदी में जाकर अपना शरीर त्याग कर
अपने धाम साकेत जाने लगे तो सारी अयोध्या नगरी को अपने साथ ले जाने लगे सब सरयू में जाकर दिव्य रूप धारण कर जाने लगे पर
हनुमान जी खडे थे.
तो श्री रामजी कहते है -कि आपको नहीं जाना ?
तो हनुमान जी कहते है वहाँ क्या है ? तो राम
जी कहते है – कि जो मेरे धाम को चला गया उसकी मुक्ति हो गई फिर उसे इस पृथ्वी पर नहीं आना है ।
उसको तो मोक्ष मिल गया.
तो हनुमान जी बोले – कि वहाँ पर आपकी कथा नहीं है?
तो भगवान कहते है कि वहाँ सभी मुझ में विलीन हो जाते किसी का कोई अस्तित्व नहीं रहता है तो हनुमान जी कहते वहाँ आपका नाम कथा नहीं है तो मै वहा जाकर क्या करूँगा ? कीर्तन भी वहाँ नहीं होता.
तो वो कहते – कि मै नहीं जाउगाँ ऐसा मोक्ष किस काम का जहाँ आपका नाम कीर्तन
नहीं है । तुलसीदास जी ने कहा है – कि “प्रभु चरित्र सुनिवे को रसिया,राम लखन सीता मन बसिया” मतलब प्रभु यहाँ राम का नाम नहीं है, तो जहाँ कथा है भगवान की वहाँ हनुमान जी आते है तो रामजी ने ये वरदान दिया उनको कि जब तक पृथ्वी पर ये युग रहेंगे तब तक तुम रहोगे । वो आज भी है हर कथा में वो जाते है और ये सत्य है
यहाँ भाव देखिए उन्होंनें मुक्ति नहीं माँगी उनको नाम ही प्यारा है । वो यहीं रहे तो जो भक्त होता है वो मुक्ति नहीं चाहता और भगवान मागनें पर भक्ति नहीं देते मुक्ति दे देते है । भक्ति और मुक्ति में भक्ति बडी है ।
भक्त के पीछे भगवान हमेशा चलते हैं, भक्त भगवान् की कथा और नाम मे ही मस्त रहते है, उनके मन मे कोई कामना नही है.. भगवान कहते है कि ऐसे संतो के चरणों की रज के लिए भगवान उनके पीछे जाते है कि उनकी रज से मै पवित्र हो जाउं भक्ति पाने के बाद भगवान भक्त के अधीन हो जाते है ।