पूज्य श्री भक्तमाली गणेशदास जी एवं श्रीमन् महाराज जी के व्याख्यान पर आधारित । अपने नाम से प्रकाशित ना करे । Copyrights :www.bhaktamal.com ®
श्री किल्हदेवजी के एक शिष्य हुए जिनका नाम श्री चतुर्दास जी था। श्री चतुर्दास जी संत एवं तीर्थदर्शनार्थ भ्रमण करते रहते थे। एक बार संत जी एक गाँव के समीप एक वृक्ष के नीचे जाकर ठहरे। संत जी ने वहां पर आसान लगा दिया और भगवन्नाम जप करने लगे। ग्रामवासियो ने आकर संतजी से कहा – महाराज! यहाँ न ठहरकर आप किसी दूसरे स्थानपर ठहरें, यहाँ एक अत्यंत प्रबल प्रेत का निवास है। संतजी ने पूछा कि वह क्या करता है तो लोगोंने बताया कि यहाँ रहने वाले को बड़ा कष्ट देता है। भैंसा, सिंह ,हाथी आदि रूपों को धारण करके डराता है और फिर ऊपर ले जाकर पटक देता है। इस तरह वह किसीको जिन्दा नहीं छोड़ता, मार ही डालता है। संत जी ने आसान लगा दिया था ,अब जहा एक बार आसान डल गया वह डल गया,उठना उचित नहीं समझा । श्री चतुर्दास जी भगवान् राम के अनन्य भक्त थे,सर्वत्र सबमे अपने प्रभुको ही देखते थे, अतः निडर थे।
रात में प्रेत भ्रमण करके आया तो प्रेतने इन्हें देखा, संतजी का वैष्णव तेज इतना प्रचंड था की उनके समीप तक नहीं आ पा रहा था। इनके तेजसे भयभीत होकर इनसे दूर ही रहा । गाँव के चारो ओर चक्कर लगता रहा और चिल्लाता रहा कि – यह जगह तो हमारी है ,साधुबाबा ने अपना आसान लगा लिया,अब हम कहा जाए? लोगोने उसका प्रलाप सुना।प्रातः काल आकर देखा तो संतजी अपने भजन-पूजन में व्यस्त थे। सब समझ गए थे की संतजी उच्च कोटि के महापुरुष है। सबने प्रार्थना करी के प्रेत पीड़ा से कैसे मुक्ति मिले। संतजी ने कहा – तुम सब इसीलिए डर रहे हो क्योंकि तुम लोग भगवन्नाम नहीं जपते ।तुम ने अब तक शरणागति नहीं ली,गले में तुलसी जी धारण नहीं की। कंठ में तुलसी बाँधने से भूत प्रेत व्यक्ति को छू तक नहीं सकते।
गाँवमें सभी लोगो ने संतजी से शरणागति स्वीकार की। एक के बाद एक सबो को महाराज जी ने श्रीराम तारक मंत्र का उपदेश कर शरणागति प्रदान की। अब प्रेत ने देखा कि सब शरणागत हो गए , इस गाँव में रहना अब असंभव हो जायेगा।प्रेत यह भी जान गया था के संतजी से ही हमारा उद्धार हो सकता है। दीक्षा के बाद संत जी सबको उपदेश दे ही रहे थे कि प्रेत थोड़ी दूरी पर खड़ा हो कर रोने लगा। विनती करके बोला- महाराज!आपने सबका उद्धार किया,सब पर कृपा कि। क्या मुझपर कृपा नहीं करेंगे? संत प्रसन्न हुए और बोले क्यों नहीं होगी।
संतजी की कृपा से प्रेत समीप आ सका, संत जी ने शंख बजाकर दक्षिण कर्ण में श्रीराम तारक मंत्र का जैसे ही उपदेश किया उसी क्षण प्रेत दिव्य स्वरुप धारण कर के आकाश मार्ग से मुक्त हो गया। संतजी ने सबसे कहा कि अब यहाँ कभी किसीको प्रेत-बाधा नहीं होगी।
श्री चतुरदासजी महाराज की जय।
भक्तवत्सल भगवान् की जय।।