भगवान् श्री रामजी ने एक दिन श्री एकनाथ महाराज को सरल मराठी भाषा में रामायण लिखने की प्रेरणा दी। परंतु उन्होंने लिखने का साहस नहीं किया तब श्री रघुनाथ जी ने स्वप्न में रामायण कही और ग्रंथ का पूरा रहस्य बता दिया।एकनाथ महाराजका यह भावार्थरामायण जब युद्धकाण्डके ४४ वे अध्यायतक लिखा जा चुका, तब उनके महाप्रस्थानका समय उपस्थित हुआ ।
श्रोताओको इस बातका बडा दु:ख हुआ कि ग्रन्थ अधूरा ही रह जायगा। कृष्णदास नामक एक रामायण लेखक एक बार एकनाथ महाराजके पास आये थे, उनका युद्धकाण्ड समाप्त होनेमें ११ दिनकी मोहलत चाहिये थी और मृत्यु सिरपर थी । एकनाथ महाराजने उनके, मृत्युका समय ११ दिन और आगें बढ़बा दिया और उनका ग्रन्थ पूरा कराया। श्रोताओको यह बात मालूम थी । इसका उन्होंने एकनाथ महाराज को स्मरण दिलाया और भावार्थरामायण लिखकर समाप्त होनेतक अपना देहावसान-काल आगे बढानेकी सिफारिश की। पर एकनाथ महाराजने कालवंचना करनेखे इंकार किया ।
रामायण लिखना आरम्भ करते हुए उन्होंने कोई मैं पन नहीं रखा तो फिर उसे पूर्ण करनेकी चिन्ता उन्हें क्यों होती ? उन्होंने कहा कि कालक्रो दण्डित करके ग्रन्थ समाप्त करनेका कोई कारण नहीं है । फिर भी बहुतोंने बहुत आग्रह किया कि ग्रन्थ तो सम्पूर्ण होना ही चाहिये तब एकनाथ महाराजने गाबबा नाम के अपने शिष्य को अपने सामने बुलवाया और उसे ग्रन्थ पूर्ण करनेक्री आज्ञा दी ।
गावबा जी एकनाथ महाराजके यहां ही रहते थे, उन्ही के शिष्य थे, लोग उसे मूर्ख और नीम-पागल समझते थे। उस से गायत्री मन्त्र का ठीक उच्चारण तक नहीं हो पाता था । इसलिये एकनाथ महाराज़ ने जब उससे ग्रन्थ पूर्ण करने को कहा तब लोगोंने यह समझा की महाराज विनोद कर रहे हैं । इसे पूरण पूरी / पुरण पोळी (चना और गुड़ की रोटी) नामक पक्वान्न खानेकी बडी चाव थी ।
बचपन में एक दिन की बात है कि यह अपनी मां से बडी जिद करने लगा कि हमें आज पूरण पूरी खिलाओ । माँ ने इससे कहा- जाओ पैठण गांव में, वहां एकनाथ बाबा नाम के साधु रहते हैं, उनके यहां जाकर रहो तो रोज तुमको पूरण पूरी मिला करेगी । यह सुनते ही लड़का वहां से उठा, रास्ता चलकर पैठण पहुंचा और वहां एकनाथ महाराज के घर गया । एकनाथ महाराज ने पत्नी गिरिजाबाई से कहा कि हरि पण्डित (नाथ पुत्र)की तरह इसको भी संभालो । तबसे यह १५ वर्ष एकनाथ महाराज के ही घर था ।
गावबा जी बड़े विलक्षण महात्मा थे। ये राम कृष्ण आदि मंत्र उच्चारण नहीं करते केवल श्री एकनाथ जी का एवं संतो का नाम जपते । जब इन्हें एकनाथ महाराज कान में मंत्र उपदेश करने लगे तब गावबा जी ने कहा कि यह सब हमको कृपा करके न बताये, हम तो ‘एकनाथ’ इस एक नामको छोड़कर और कोई नाम नहीं जपेंगे । नाथके घर रहते हुए यह कथा कीर्तन सुना करता और जो काम करने को कहा जाता वह किया करता था और सदा मगन रहता था । जो काम करता वह दक्षता के साथ करता था ।
ऐसा जाहिल और नीम पागल सा आदमी सत्संग से ऐसा बना कि मरण शय्यापर एकनाथ महाराज ने जब उससे भावार्थ रामायण ग्रंथ आगे तैयार करने को कहा तो गुरु कृपा दृष्टि से एवं एकनाथ जी का नाम आश्रय लेने से गावबा जी पर ऐसी कृपा हुई कि उनकी सरस्वती सहज जागृत हो गयी एवं उन्होंने उसी समय ४५ वां अध्याय तैयार कर दिखाया और एकनाथ महाराज के प्रयाण के पश्चात् शेष भाग भी पूरा करके भावार्थरामायण सम्पूर्ण किया ।
ऐसे ऐसे सुंदर भाव सरल मराठी भाषा में गावबा जी ने ग्रंथ में लिखे है जैसे हिंदी रामायण में पूज्यपाद गोस्वामी तुलसी द्वारा लिखे गए है। इस वाणी को पढ के समज आ जाता है की संतो की सीथ प्रसादी, आश्रय और कृपा का प्रभाव क्या हो सकता है। श्री भावार्थ रामायण का दक्षिणी भारत में वही आदर है जो उत्तर में श्री गोस्वामी जी की रामायण का है।