एक बार की बात है अत्यन्त सुन्दर, अदभुत, अलौकिक एवं तेजस्वी गजानन और षडानन के दर्शन करके देवगण अत्यन्त प्रसन्न हुए । माता पार्वती के चरणो में उनकी अगाध श्रद्धा हुई । उन्होंने सुधासिंचित एक दिव्य मोदक माता पार्वती के हाथमें दिया । उस दिव्य मोदक को माता के हाथ में देखकर दोनों बालक उसे माँगने लगे ।
पहले इस मोदक (लइडू) का गुण सुनो । माताने दोनों पुत्रो से कहा- इस मोदक की गंध से ही अमरत्व की प्राप्ति होती है । निस्सन्देह इसे सूंघने या खानेवाला सम्पूर्ण शास्त्रो का मर्मज्ञ, सब तत्वोंमें प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान, ज्ञान विज्ञान विशारद और सर्वज्ञ हो जाता है ।
पद्मपुराण के सृष्टिखंड में उल्लेख है की मोदक का निर्माण अमृत से हुआ है । संत श्री ज्ञानेश्वर महाराज ने मोदक को परम मधुर अद्वैत वेदांत का रूपक बताया है।
माता पार्वती ने आगे कहा- मेरे साथ तुम्हारे पिता की भी सहमति है कि तुम दोनो में जो धर्माचरण के द्वारा अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर देगा, वही इस मोदक का अधिकारी होगा ।
माता की आज्ञा प्राप्त होते ही चतुर कार्तिकेय अपने तीव्रगामी वाहन मयुर पर आरूढ हो त्रैलोक्य के तीर्थो की यात्रा के लिये चल पड़े और मुहूर्तभर में ही उन्होंने समस्त तीर्थो में स्नान कर लिया ।
इधर मूषकवाहन लंबोदर ने अत्यन्त श्रद्धा भक्तिपूर्वक माता पिता की परिक्रमा की और हाथ जोड़कर उनके सम्मुख खड़े हो गये । उसके कुछ ही देर बाद स्कन्द ने पिताके सम्मुख उपस्थित होकर निवेदन किया की मोदक मुझे दीजिये।
माता पार्वती ने उसी समय कहा की समस्त तीर्थो में किया हुआ स्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञोंका अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयमका पालन-ये सभी साधन माता -पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते ।
माता पार्वती ने दोनों पुत्रो की ओर देखकर कहा- अतएव यह गजानन सैकडों पुत्रों और सैकडों गणो से भी बढ़कर है । इस कारण यह देव निर्मित अमृतमय मोदक मैं गणेश को ही देती हूं । माता पिता की भक्तिके कारण यह यज्ञादि में सर्वत्र अग्रपूज्य होगा । इस गणेशकी अम्रपूजा से ही समस्त देवगण प्रसन्न होंगे।
पिता कर्पूरगौर शिव ने भी कह दिया । माता पार्वती ने सर्वगुण दायक पवित्र मोदक गणेशजी को ही दिया और अत्यन्त प्रसन्नता से उन्होंने समस्त देवताओ के सम्मुख ही उन्हें गणोंके अध्यक्ष पदपर प्रतिष्ठित कर दिया ।
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