श्री यतीराम जी महाराज श्री रामानन्दी वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक श्री रामानन्दाचार्यं जी महाराज के द्वादश प्रधान शिष्यो मे से एक श्री सुखानंदाचार्य जी के शिष्य थे । आप श्रीभगवान् के नाम गुणगान मे मग्न रहा करते थे, सदा
भाव जगत में रहने के कारण सामान्यज़नों को आप उन्मत्त की तरह प्रतीत होते थे ।
एक बार की बात है, किसी बादशाह की सवारी कहीं जा रही थी; साथ में बड़ा लाव लश्कर भी था । उन लोगों को किसी एक ऐसे आदमी की आवश्यकता थी, जो सामान के एक बड़े गट्ठर को सिरपर लादकर चले । आप अपनी मस्ती में घूमते हुए उधर जा निकले । फिर क्या था, बादशाह के यवन सिपाहियों ने इन्हें ही पकडकर इनके सिंरपर गट्ठर रखवा दिया । ये भगवान् की लीला स्मरण करते रहये और लीला भाव में ही मग्न चले जा रहे थे ।
सामान का गट्ठर भी भारी था, अत: एक जगह आप लड़खड़ा गये और गट्ठर गिर पड़ा । अब तो वे दुष्ट सिपाही इन्हें मारने लगे । आप तो क्रोध शोक आदि विकारों से मुक्त थे, परंतु अपने भक्त की ऐसी अवमानना और सिपाहियों की दुष्टता सर्वशक्तिमान भगवान् से न सही गयी । अचानक असंख्य गिरगिट वहां प्रकट हो गये और यवन सिपाहियों-को काटने लगे । वे जिधर भी भागते उधर ही गिरगिट प्रकट होकर उन्हें काटने लगते ।
सिपाहियों की यह दुर्दशा देखकर बादशाह समझ गया कि यह हिन्दू फकीर सिद्ध महापुरुष है । फिर तो वह रथ से उतरकर तुरंत आपके चरणों मे गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा । इसपर आपने कहा – भाई ! मैं आपसे नाराज ही कहां दूं जो क्षमा कर दूं! जो आपपर नाराज है और दण्ड है रहा है, उससे क्षमा मांगो ।
हरि अनंत हरि कथा अनंता…
प्रभू एवं उनके भग्तों की कथाएँ पढ़ कर प्रभू तथा उनकी हम पर हो रही अनवरत कृपा पर विश्वास में अभिवर्द्धी होती है…
श्री हरि को पाने की, उनके दर्शन की, अभिलाषा और बलवती होती है…
मन इन वृत्तांतों को पढ़ कर निर्मल, कोमल एवं करुणामय हो जाता है…
इस कार्य को संपादित करने वाले सभी लोगों का हृदय से आभार…
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Hey mere nath mai aapko bhulu nahi
Hey dinbandhu hey sarnagatvatsal
Aapki sada hi jy ho
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