पूज्य संतो की कृपा से कुछ छिपे हुए गुप्त भक्तो के चरित्र जो हमने सुने थे वह आज अनायास ही याद आ गए । उनमे से एक चरित्र संतो की कृपा से लिख रहा हूं –
श्री पवनपुत्र दास जी नामक एक हनुमान जी के भोले भक्त हुए है । यह घटना उस समय की है जब भारत देश मे अंग्रेजो का शासन था । अंग्रेज़ अधिकारी के दफ्तरों के बाहर इनको पहरेदार (आज जिसे सेक्युरिटी गार्ड कहते है )की नौकरी मिली हुई थी । घर परिवार चलाने के लिए नौकरी कर लेते थे , कुछ संतो की सेवा भी हो जाया करती थी पैसो से । कभी किसी जगह में जाना पड़ता , कभी किसी और जगह जाना पड़ता । एक समय कोई बड़ा अंग्रेज़ अधिकारी भारत आया हुए था और पवनपुत्र दास जी को उनके निवास स्थान पर पहरेदारी करने का भार सौंपा गया । श्री पवनपुत्र दास जी ज्यादा पढ़े लिखे नही थे , संस्कृत आदि का ज्ञान भी उनको नही था परंतु हिंदी में श्री राम चरित मानस जी की चौपाइयों का पाठ करते और हनुमान चालीसा का पाठ लेते , ज्यादा कुछ नही आता था ।
अन्य समय श्री हनुमान जी के रूप का स्मरण करते हुए सतत श्री सीताराम जी का नाम जप करते रहते – सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम : इसी का जाप करते थे, मंत्र आदि उन्हें कुछ आते थे नही । रात को बहार बैठ जाते पहरेदारी करने और नाम जप , कीर्तन आदि में मग्न रहते । इनको अनुभूति होती कि हनुमान जी वह उपस्थित है और श्री सीताराम जी का नाम श्रवण करने के लिए नित्य वहां आते है । कई बार दिखाई पड़ता कि हनुमान जी महाराज भाव मे भर कर नृत्य करने लगे है । एक बार ऐसे ही पवनपुत्र जी बहार बैठकर हनुमान जी का ध्यान कर रहे थे और उनको श्री सीताराम जी का नाम सुना रहे थे, वे कुछ समय बाद भाव मे मगन हो गए और उनकी आंखें बंद हो गयी । कीर्तन चल रहा था और अंग्रेज़ अधिकारी के कानों मे उसकी ध्वनि पहुंची । उसी समय अंग्रेज अधिकारी बाहर दरवाज़े के बाहर आया और देखा कि पवनपुत्र दास जी आँखें बंद करके कीर्तन कर रहे है । उस अधिकारी ने भक्त जी को कंधे पकड़ कर हिलाया परंतु वे तो भाव मे ही मगन थे । अंग्रेज़ अधिकारी क्रोध में भर कर अपशब्द कहने लगा परंतु फिर भी भक्त जी पर कोई असर नही हुआ ।
उसने सोचा कि यह पहरेदार तो ठीक से काम पर ध्यान नही देता है, इसे तो दंड मिलना चाहिए । अंग्रेज़ अधिकारी चाबुक लेकर आया और भक्त जी पर उसने कई प्रहार किए । कुछ देर में भक्त जी मूर्छित हो गए और वही पड़े रहे । उन्हें अगले दिन पता चला कि उनपर अधिकारी क्रोधित हुए थे और उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया गया है । आगले दिन हनुमान जी महाराज को भक्त का कीर्तन सुनने नही मिला । एक महाभयंकर विशाल वानर का रूप धारण करके हनुमान जी उस अंग्रेज़ अधिकारी के निवास स्थान के अंदर चले गए और उसे बड़े बड़े नाखून और दांतों से उसका शरीर नोचने लगे । पूंछ से भी उसे बहुत मार पड़ी । वह अधिकारी कांप गया और डर से चिल्लाने लगा , उसने वानर पर बंदूक से गोलियां भी चलाई पर वह भी वानर के शरीर से टकराकर चूर चूर होकर नीचे गिर रही थी। उसने सिपाहियों को मदद के लिए बुलाया पर कोई नही आया । उसका शरीर घावों से भर गया और पूरे शरीर से रक्त बहने लगा , अंगों में दाह और दर्द के मारे वो पागल हो गया ।
उसकी चिकित्सा बड़े बड़े डॉक्टरों द्वारा भी संभव नही हो पाई । उसके न तो घाव भरते और न शरीर का दाह काम होता । अगली रात स्वप्न में वही भयंकर वानर का स्वरूप उस अधिकारी को दिखाई पड़ा और उसने कहा कि तुमने भगवान श्री राम के भक्त का अपराध किया है – जाकर उसके चरण पकड़ो और क्षमा मांगो। उस अधिकारी ने अगले दिन वह स्वप्न सबको बताया । एक अन्य सिपाही थोड़ा बुद्धिमान था , उसको सारी बात समझमे आ गयी । उसने अधिकारी से कहा कि साहब , आपने जिस तरह के वानर का स्वरूप वर्णन किया है वह वानर और कोई नही स्वयं श्री हनुमान जी ही थे । पवनपुत्र दास जी ने आजतक जहां भी नौकरी की, वहां कभी कोई चोरी नही हुई है । वे हनुमान जी के बड़े भक्त है । आपने पवनपुत्र दास जी का अपमान किया और उन्हें कष्ट पहुँचाया है अतः आपको दवाई नही केवल भक्त पवनपुत्र दास जी ही बचा सकते है ।
अंग्रेज़ अधिकारी किसी तरह सिपाहियों को लेकर गाडी में बैठकर भक्त जी के घर पहुंचा । उसने चरणों को पकड़ कर क्षमा याचना करते हुए सारी घटना सुनाई । भक्त जी समझ गए कि वह स्वयं श्री हनुमान जी ही थे । पवनपुत्र दास जी रोकर अधिकारी कहने लगे कि आप बड़े भायगशाली है आपको भगवान के प्रिय भक्त श्री हनुमान जी का दर्शन एवं स्पर्श प्राप्त हुआ । अधिकारी को कष्ट में देखकर उन्होंने हनुमान जी से प्रार्थना करते हुए कहा की इस अंग्रेज़ अधिकारी को क्षमा करें ।पवनपुत्र दास जी के प्रार्थना करने और उस अधिकारी का शरीर पूर्ववत स्वस्थ हो गया । यह चमत्कार देखकर वह आश्चर्यचकित हो गया । उसने भक्त जी से कहा कि आप सम्मानपूर्वक चलकर एक उच्च पद की नौकरी स्वीकार कीजिये। पवनपुत्र दास जी ने हाथ जोड़कर कहा कि भगवान को मेरे कारण कष्ट हुआ है, अब मै और नौकरी नही करना चाहता ।
अंग्रेज ने भक्त जी को घर और बहुत से धन भेट में दिया जिसे उन्होंने गरीबो , गौ और संतो की सेवा करने के उपयोग में लिया । उसके पश्चात पवनपुत्र दास जी आजीवन भगवान के भजन में ही मग्न रहे , लोगो मे उनके प्रति बहुत श्रद्धा थी । वह अंग्रेज़ अधिकारी भी अपना पद त्यागकर धीरे धीरे हिंदी सिख गया और भगवान के भजन , सत्संग में लग गया । उस अंग्रेज ने कमाया हुआ काफी धन भक्त जी के परिवार को दे दिया । इस तरह भक्त पवनपुत्र दास और पवनपुत्र हनुमान जी की कृपा से वह अंग्रेज भी भक्त बन गया और उसका जीवन सफल हो गया । पवनपुत्र दास जी अपने को हमेशा छिपा कर रखते थे और छिपकर ही भजन करते थे । गृहस्थ होते हुए भी नौकरी करते समय निरंतर भजन में लगे रहने वाले थे । इनके विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नही है । संतो की कृपा से जितना बना उतना लिखा हमने ।
मोरे मन प्रभु अस बिस्वासा । राम ते अधिक राम कर दासा ।। राम सिन्धु घन सज्जन धीरा । चन्दन तरु हरि संत समीरा ।।