पूज्य बाबा श्री रामदास जी (करहवाले महाराज जी) के श्रीमुख से निकली कथा – श्री राजेंद्रदासचार्य जी महाराज द्वारा सुनाया प्रसंग
एक दिन श्री रघुनाथ जी ने हनुमान जी से कहाँ – हनुमान ! तुम निरंतर हमारी सेवा मे रहते हो और नाम जप भी करते हो परंतु सत्संग और कथा श्रवण करने नही जाते – यह तुम्हारे अंदर थोडी सी कमी है । हनुमान जी बोले – प्रभु ! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है परंतु जिन भगवान की कथा है वे तो निरंतर मिले हुए है और आपकी सेवा भी मिली हुई है । आपकी जो प्रत्यक्ष अवतार लीलाएं है – जो चरित्र है वे प्रायःसभी हमने देखे है अतः मै सोचता हूं की कथा श्रवण से क्या लाभ ? श्री रघुनाथ जी बोले – यह सब तप ठीक है परंतु कथा तो श्रवण करनी ही चाहिए । श्री हनुमान जी ने पूछा कि आप ही कृपापूर्वक बताएं की किसके पास जाकर कथा श्रवण करें ?
रघुनाथ जी बोले – नीलगिरीपर्वत पर श्री काग भुशुण्डि जी नित्य कथा कहते है , वे बड़े उच्च कोटी के महात्मा है । शंकर जी, देवी देवता, तीर्थ आदि सभी उनके पास जाकर सतसंग करते है , आप उन्ही के पास जाकर कथा श्रवण करो । हनुमाम जी ने बटुक रूप धारण किया और नीलगिरी पर्वतपर कथा मे पहुँच गए । वहां श्री कागभुशुण्डि जी हनुमान जी की ही कथा कह रहे थे । उन्होंने कहां की जब जाम्बवान जी ने हनुमान जी को अपनी शक्ति का स्मरण कराया तब हनुमान जी ने विराट शरीर धारण किया , एक पैर तो था महेंद्रगिरि पर्वत पर भारत के दक्षिणी समुद्र तटपर और दूसरा रखा सीधे लंका के सुबेल पर्वत पर । एक ही बार मे समुद्र लांघ गए ।
वहां विभीषण से मिले, अशोके वाटिका मे जाकर सीधे ,बिना चोरी छिपे श्री सीता जी से मीले और वहां जब उनपर राक्षसों ने प्रहार किया तब उन्होंने सब राक्षसों को मार गिराया । रावण के दरबार मे भी पहुंचे , वहां रावण ने श्री राम जी के बारे मे अपशब्द प्रयोग किये और राक्षसों से कहां कि इस वानर की पूंछ मे आग लगा दो । हनुमान जी ने यह सुनकर जोर से हूंकार किया और उनके मुख से भयंकर अग्नि प्रकट हुए । उस अग्नि ने लंका को जला दिया और हनुमान जी पुनः एक पग रखा तो इस पर रामजी के पास पहुँच गए। यह सुनते ही हनुमान जी ने सोचा की कागभुशुण्डि जी यह कैसी कथा सुना रहे है । मैन तो इस प्रकार न समुद्र लांघा और न इस प्रकर से लंका जली । लगता है कथा व्यास आजकल असत्य कथा कहने लगे है ।
श्री हनुमान जी के वापस आनेपर रघुनाथजी ने पूछा कि आज कथा मे कौनसा प्रसंग सुनाया गया ? हनुमान जी ने उदास मुख से बताया की प्रसंग तो समुद्र लंघन और लंका दहन लीला का था परंतु उन्होंने तो कथा को बहुत प्रकार से बढ़ा चढाकर कहा । इस तरह की कोई लीला मैने नही की । रघुनाथ जी हंसते हए बोले की आपको संदेह नही करना चाहिए , व्यास आसान पर बैठे संत के प्रति मनुष्य बुद्धी नही होनी चाहिए – कागभुशुण्डि जी कोई सामान्य महात्मा नही है । हनुमान जी ने बात तो मान ली और प्रभु के चरण दबाने लगे पर मन मे संदेह था , वे बार बार वही बात सोच रहे थे की आखिर विश्वास करें तो कैसे करे ? श्री राम जी ने उस समय अपनी अनामिका से अंगूठी निकाल कर गिरायी और कहां कि हनुमान जी मेरी अंगूठी उठाकर दो ।
हनुमान जी अंगूठी उठाने झुके तो वह अंगूठी और आगे सरक गयी, उसको पुनः पकड़ने गए तो और आगे जाने लगी । पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर अंत मे सुमेरु पर्वत की एक कंदरा मे प्रविष्ट हो गयी । वहां पर एक विशाल गुफा के भीतर वह चली गयी, हनुमान जी अंदर जाने लगे तो एक विशाल वानर ने उन्हें रोक लिया और उसने हनुमान जी से कहां की मैं यहां का द्वारपाल हूं , तुम्हे भीतर जाने से पहले मुझसे अनुमति लेनी चाहिए । हनुमान जी ने द्वारपाल से कहा की तुम मुझे जानते नही हो इसिलए मुझसे ऐसा कहते हो : मै श्री राम जी का दास, पवनपुत्र हनुमान हूँ । यह बार सुनकर वह द्वारपाल वानर हंसकर बोला की हनुमान कब से इतने निर्बल, तेजहीन हो गए ? झूठ कहते हुए तुम्हे लज्जा नही आती ? तुम हनुमान जी कैसे हो सकते हो, हनुमान जी तो गुफा के भीतर ध्यान मे बैठे है ।
हनुमन जी समझ गए की अवश्य ही इसमें प्रभु की कोई लीला है । हनुमान जी ने द्वारपाल से आदरपूर्वक कहां की आप भीतर जाकर हनुमान जी से विनती करो के बाहर एक वानर खड़ा है और आपके दर्शन करना चाहता है । द्वारपाल ने भीतर जाकर हनुमान जी से कहां की एक वानर बाहर खड़ा है और अपने को श्रीराम दास हनुमान कहता है । भीतर बैठे हनुमान जी ने द्वारपाल से कहां की वे हनुमान जी ही है, तुम उनको प्रणाम करके बहुत आदरपूर्वक यहां लाओ । बाहरखड़े हनुमान जी को द्वारपाल ने भीतर लाया तब उन्होंने देखा की दिव्य प्रकाश से वह गुफा चमक रही है और स्वर्ण सिंहासन पर करोड़ो सूर्य के समान तेजस्वी हनुमान जी बैठे है ।
उन्होंने हनुमान से कहां की श्री कागभुशुण्डिजी ने जो कथा सुनाई थी वह किसी अन्य कल्प की है । हर कल्प मे भगवान के अवतार होते रहते है , अलग अलग कल्पो मे अलग अलग पद्धति से लीला होती रहती है। युग के अनुसार और लीला के अनुसार भगवान श्रीराम अपने लीला पात्रों मे जैसी शक्ति स्थापित करना चाहते है वैसी करते है । एक पैर से लंका पर जाने वाले और फूंक मारकर लंका जलाने वाला हनुमान मैही हूं , तुम संदेह रहित हो जाओ। आपके द्वारा पूँछ बांधने के कारण लंका दहन करवाया और मेरे द्वारा फूंक मारकर ।
यह शक्ति आपकी और मेरी नही, यह शक्ति तो श्रीराम जी की है । यह जो मेरे पास जो कुंड है, उसमे जाकर देखो – उसमे तुम्हे भगवान की अंगूठी मिल जाएगी जिसका पीछा करते हुए तुम यहां आये । हनुमान जी ने कुंड मे देखा तो पूरे कुंड मे एक जैसी सैकड़ो अंगूठियां दिखाई पड़ी । सिंहासन मेबैठे हनुमान जी ने कहां की जब जब अवतार काल मे श्रीराम जी हनुमान जी को कथा श्रवण करने भेजते है और उन्हें संदेह होता है तबवे ऐसी लीला करते है । अब तक सैकडो बार अवतार हुआ और सैकड़ो हनुमान यहां आये है । सार यही है की कितने भी बड़े महात्मा हो, सिद्ध हो , योगी हो – सत्संग और कथा का त्याग कभी नही करना चाहिए ।
Bahut khusi hui ki mujh tak yah katha puchti he
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बहुत सुंदर कथा है |
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🙏🙏🙏
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Bilkul सत्य वचन
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धन्य धन्य हो गया
सिद्धिदा तत्त्वज्ञः खिन्नः आसीत् प्रबलं वर्णः रद्द त्वं दलं सज्ज
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Bahut Sundar Kathi Hai. Sri Ram Sharnam
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Very nice Jai Shree Ram
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Very nice Jai Shree Ram prabhu ki katha ki jai ho
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