संतो के श्रीमुख से निकला वाक्य सत्य ही होता है -श्री गिरिराज गोवर्धन जी की तरहठी में एक सिद्ध गौड़ीय वैष्णव संत रहते थे श्री रामकृष्ण दास जी जिनको सभी श्री पंडित बाबा के नाम से जानते थे । एक ब्रजवासन स्त्री संत बाबा की सेवा करने रोज आती और उनको फल आदि दे जाती । बाबा किसी को कभी अपना शिष्य नहीं बनाते थे । एक बार वह भोली ब्रजवासन स्त्री बाबा के पास आकर बोली – बाबा ! मुझे कौनसा मंत्र जपना चाहिए ? बाबा ने पूछा – बेटी कौनसे कुल से हो ? कौनसे संप्रदाय से हो ?उस स्त्री ने उत्तर दिया की बाबा मै तो वल्लभ कुल की हूँ। बाबा बोले – बेटी वल्लभ कुल में तो एक ही मंत्र जपा जाता है अष्टाक्षर मंत्र – श्री कृष्णः शरणम् मम , तुम भी यही जपा करो । ब्रजवासन स्त्री बोली – बाबा ! यह नाम ( कृष्ण ) मेरे मुन्ना (बेटे) के चाचा अर्थात मेरे जेठ जी का है , मै नहीं जप सकती । मुझे लाज आती है । बाबा बोले – अच्छा फिर क्या जप सकती हो ?उनको क्या कहकर पुकारती हो ? स्त्री ने कहा – हम तो मुन्ना के चाचा ही कहते है उनको । बाबा बोले – तो तुम “मुन्ना के चाचा शरणम मम ” जपो परंतु रूप ध्यान और मन से स्मरण भगवान् श्रीकृष्ण का ही रखना । फिर बाबा बोले – अच्छा और क्या पूछना चाहती है बता ? स्त्री बोली – बाबा मेरे मन में एक इच्छा है की भगवान् मुझे बड़ी एकादशी के दिन ही अपने धाम लेकर जाए ।बाबा मुस्कुराये और बोले ठीक है ऐसा ही होगा । तू यह बताया हुआ नाम जप और अंदर से भाव स्मरण भगवान् का ही रखना । बाबा के शरीर छोडने के बाद जब वह स्त्री भी बूढी हो गयी और कुछ ही समय बाद जब बड़ी एकादशी आयी तो एकाएक एक नीला तेज प्रकट हुआ ,भगवान स्वयं उसे लेने आये और कहा की चल मेरे साथ, मै तुझे ले जाने आया हूँ । भगवान् ने याद दिलाया की तूने पंडित बाबा से इच्छा कही थी की इसी दिन भगवान् मुझे अपने धाम ले जाए । आज मै बाबा की वाणी सत्य करने आया हूं । मंत्र तो अजब गजब का था पर संत के मुख से निकल था ,इसी मंत्र का स्मरण करती हुई वह स्त्री श्री भगवान् के साथ गोलोक धाम को चली गयी ।