बाबा श्री गमेशदास भक्तमाली जी पर स्वयं श्री रामराजा सरकार की कृपा –
बाबा श्री गणेशदास भक्तमाली जी जब अपने विद्यार्थी जीवन की समाप्ति के बाद साधना के पथ पर निकले तो कुछ दिन विंध्याचल रहे, फिर चित्रकूट रहे और आगे चलते चलते जंगलों के रास्ते से ओरछा की तरफ बढ़े । जाते जाते रास्ता भटक गए , तीन दिन बाद जैसे तैसे ओरछा पहुंचे । तीन दिन से भूखे थे, इतनी भूख लगी कि वहां बेतवा नदी के तट पर बैठे बैठे थोड़ी मिट्टी खाकर जल पी लिया और वही सो गए । अगले दिन उठे तो सोचने लगे की आज तो एकादशी है, आज भी जल पीकर ही भजन करेंगे । भगवान के नाम का जाप करने बैठे उतने मे ही एक वैष्णव वहां आये और कहां की ब्रह्मचारी जी प्रणाम ! मै पंडित रामराजा ! यही ओरछा का रहने वाला हूं । आप भूख से पीड़ित लहते है । मेरे घर मे बहुत पवित्रता है अतः आप मेरे घर एकादशी का फलाहार करने पधारें । ब्रह्मचारी महाराज उनके साथ उनके घर गए और भगवान का प्रसाद पाकर वापस बेतवा नदी के तट पर आकर भजन करने लगे ।
अगले दिन द्वादशी के दिन पंडित राजाराम जी पुनः वहां आये और बोले – आज द्वादशी है ! शास्त्र कहता है की द्वादशी का पारायण करने से ही पुण्य मिलता है अतः आप प्रसाद पाने मेरे घर पधारें । कुछ दिन वही नदी किनारे रहकर भजन किया । एक दिन ब्रह्मचारी जी के मन आया कि चलो उन राजाराम पंडित से मिलकर आये और ओरछा मे निवास करने का कोई स्थान पूछा जाए । पूरे ओरछा मे घूम घूम कर पंडित राजाराम के घर का पता पूछा पर कुछ पता नही लगा, संध्याकाल होनेपर श्री रामराजा सरकार के मंदिर गए और वहां के पुजारी जी से पूछा – बाबा! आप की उम्र बहुत हो गयी यहां रहते रहते ।कृपया यह बताएं कि ओरछा मे कोई पंडित रामराजा निवास करते है क्या? पूरा ओरछा ढूंढ लिया पर पंडित रामराजा का कुछ पता नही लगा ।
पुजारी जी ने नेत्रों से अश्रु बहने लगे , उन्होंने कहा – वो कोई पंडित राजाराम नही थे, वे स्वयं रामराजा सरकार थे जिन्होंने आपको प्रसाद पवाया । मुझे श्री रामराजा सरकार ने स्वप्न दर्शन देकर कहा कि मेरा प्रिया भक्त काशी से ओरछा आएगा । आप उसके भोजन और निवास का इंतजाम मंदिर में ही कर दीजिए । कुछ महीने वही रहकर फिर श्री वृंदावन को आये ।